Friday, April 3, 2020

ये कैसी प्रतिज्ञा?


                             ये कैसी प्रतिज्ञा?
         हम सब जब स्कूल जाते थे और अब जो बच्चे स्कूल में पढ़ते है ; अपने विद्यार्थी जीवन में हम सभी एक प्रतिज्ञा लेते है | जो अभ्यासक्रम की हर पुस्तक पर छपी होती है और सिर्फ छपी होती है |
         हम प्रतिज्ञा लेते है की भारत मेरा देश है | सभी भारतीय मेरे भाई बहन है | तो फिर क्यों मेरे भारत की जगह पर हम मेरा राज्य , मेरी भाषा , मेरा प्रांत , मेरा समाज इन सब में हम खो जाते है ? क्यों पहले भाई बहन की प्रतिज्ञा करने पर वही नजर बाद में बदल जाती है और जिसका शिकार मासूम लडकियां होती है |
         आम्ही म्हणतो ,’’ माझ्या देशावर माझे प्रेम आहे. माझ्या देशातल्या समृद्ध आणि विविधतेने नेटलेल्या परंपरांचा मला अभिमान आहे.” हा कसला प्रेम आहे आपल्या देशाबद्दल जे देशाचा विकास सोडून स्वतः चा विकास करण्यात गुंतलेला आहे. समृद्ध आणि विविधतेने नेटलेल्या परंपरांच्या एवढा नादी लागला कि तो अंधाविश्वाशी होऊन मानव – मानव प्रेम विसरून गेला आणि आपल्याच माणसांचा जीव घेऊ लागला , शोषण करू लागला.
         हम उन परम्परावो का सफल अनुयायी बनने की क्षमता मुझे प्राप्त हो कहते है और उसी के गर्व मे दुसरो की जो हमसे कमजोर है उनकी क्षमतावो को दबाकर उनका शोषण करते है|
        We are going to forget  to give respect  parents , teachers  and aal elders. तो हम हर एक से
 सौजन्यपूर्ण व्यव्हार किस तरह करेंगे| रुपये – पैसे , जीवन की दौड़ में अपने ही जीवन का सहारा नष्ट करते
 जा रहे है|
             इतना सब करने पर हम ये कैसे कह सकते है कि हम अपने देश और देशवासियों के प्रति निष्ठां
रखेंगे | उनकी भलाई और समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है | और हम अपनी भलाई और समृद्धि में ही मेरा
सुख निहित है ऐसा सोचते है|
                                जय हिंद! जय भारत! जय भीम!
                                                     शैलेन्द्र दिलीप खोब्रागडे